बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र
प्रश्न- 'न्याय दर्शन' में 'अनुमान प्रमाण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए एवं अनुमान प्रमाण के प्रकारान्तर भेदों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
न्याय दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
उत्तर -
अनुमान प्रमाण
भारतीय प्रमाणमीमांसा में प्रमा विभिन्न भेदों में अनुमिति प्रमा को वैशिष्ट्यपूर्ण स्थान प्राप्त है। अनुमिति प्रमा के कारण या साधन या प्रमाण को अनुमान कहते हैं। यथार्थ ज्ञान के स्रोत के रूप में अनुमान प्रमाण की महत्ता को चार्वाक दर्शन के अतिरिक्त भारतीय दर्शन के सभी सम्प्रदायों में स्वीकार किया गया है। व्युत्पत्ति की दृष्टि से अनुमान शब्द दो शब्दों के योग से बना है अनु और मान। अनु का अर्थ है 'पश्चात' और मान का अर्थ है 'ज्ञान'। इस प्रकार अनुमान का शाब्दिक अर्थ 'पश्चात ज्ञान' या बाद में होने वाला ज्ञान है। दूसरे शब्दों में, ज्ञात तथ्य के बाद उसी के आधार पर अज्ञात तथ्य के विषय में कोई ज्ञान प्राप्त करना अनुमान है। अनुमान प्रत्यक्ष पर आधारित होता है। इसीलिए महर्षि गौतम ने अनुमान को प्रत्यक्षमूलक ज्ञान कहा है। इस प्रकार अनुमान पूर्व ज्ञान पर आधारित है।
न्याय दर्शन का अनुमान एक व्यवहित एवं परोक्ष (Immediate and Indirect Knowledge) है। इसमें ज्ञान की उपलब्धि प्रत्यक्ष द्वारा नहीं होती। इसमें हेतु या लिंग के प्रत्यक्ष ज्ञान से उस लिंग को धारण करने वाले लिंगी का ज्ञान प्राप्त होता है या लिंग के ज्ञान से उस पदार्थ का ज्ञान प्राप्त किया जाता है जिसमें यह लिंग पाया जाता है। इसी प्रकार अनुमान को परिभाषित करते हुए महर्षि वात्सायन का कथन है, प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा लिंग के ज्ञान से बाद में उसके विषय का होने वाला ज्ञान अनुमान है। जैसे पर्वत पर धुएँ का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करके धुएँ और आग के सार्वभौम साहचर्य का स्मरण करके पर्वत पर अदृष्ट आग का ज्ञान प्राप्त करना अनुमान है। यहाँ आग का ज्ञान प्रत्यक्षमूलक नहीं है। प्रत्यक्ष केवल धुएँ का होता है, आग का नहीं। आग अप्रत्यक्ष है जिसका ज्ञान धुएँ के ज्ञान से होता है। अतः अनुमान एक व्यवहित एवं परोक्ष ज्ञान है।
एक अन्य परिभाषा के अनुसार, परामर्श से उत्पन्न ज्ञान अनुमिति है और अनुमिति का प्रमाण अनुमान है। व्याप्ति विशिष्ट पक्ष धर्मता का ज्ञान परामर्श है। व्याप्य और व्यापक का सम्बन्ध व्याप्ति है। इसे स्वाभाविक सम्बन्ध हेतु और साध्य का नियतसाहचर्य सम्बन्ध या अविनाभाव नियम भी कहते हैं। व्याप्ति अनुमान का प्राण है, क्योंकि बिना व्याप्ति ज्ञान के अनुमान सम्भव नहीं है। पक्ष में हेतु की उपस्थिति का प्रत्यक्ष ज्ञान पक्ष-धर्मता है। पक्ष वह आश्रय या अधिष्ठान है जिसमें साध्य को सिद्ध किया जाता है। इस प्रकार हेतु और साध्य के नियतसाहचर्य सम्बन्ध के ज्ञान से विशिष्ट पक्ष में हेतु की उपस्थिति का ज्ञान प्राप्त करना परामर्श है। परामर्श से उत्पन्न ज्ञान अनुमिति है। जैसे जहाँ धुआँ होता है वहाँ आग होती है, यह एक व्याप्ति वाक्य है जिसमें धुआँ ( हेतु) और आग (साध्य) के स्वाभाविक सम्बन्ध का कथन है। पर्वत पर धुएँ की उपस्थिति का प्रत्यक्ष ज्ञान पक्ष-धर्मता है। जहाँ धुआँ है वहाँ आग है, इस ज्ञान से विशेषित पर्वत पर धुएँ का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना परामर्श है। इससे पर्वत पर अदृष्ट आम का ज्ञान प्राप्त करना अनुमिति है और इसका प्रमाण अनुमान है। -
अनुमान प्रमाण के प्रकारान्तर भेद- प्राचीन न्याय दर्शन में अनुमान के दो भेद प्राप्त होते हैं - स्वार्थानुमान एवं परार्थानुमान अनुमान का यह विभेद प्रयोजन भेद के आधार पर किया जाता है।
स्वार्थानुमान - जो अनुमान स्वतः अपनी संशयनिवृत्ति के लिए या स्वतः अपने ज्ञान के लिए किया जाता है उसे स्वार्थानुमान कहते हैं। इसे वाक्यों की किसी क्रमबद्ध व्यवस्था में अभिव्यक्त करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। यह एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रियामात्र है। जैसे रसोईघर आदि स्थानों में धुएँ के साथ आग को देखकर कोई व्यक्ति धुएँ और आग की व्याप्ति को ग्रहण करके पर्वत पर धुआँ देखता है और धुएँ को देखकर जहाँ धुआँ है वहाँ आग है, इस व्याप्ति को स्मरण करता है। वह इसके बाद पर्वत पर भी धुआँ है - तीसरी बार धुएँ को देखकर अपने मन में ही यह जान लेता है कि पर्वत पर आग है। यह स्वार्थानुमान है। इसमें क्रमशः प्रथम लिंग परामर्श, द्वितीय लिंग परामर्श एवं तृतीय लिंग परामर्श होता है।
परार्थानुमान - जो अनुमान दूसरों की संशयनिवृत्ति के लिए या दूसरों को समझाने के लिए होता है, उसे परार्थानुमान कहते हैं। इसे तर्कवाक्यों की एक व्यवस्था में रखना आवश्यक है जिसमें पाँच अवयव होते हैं। अतः इसे 'पंचावयव अनुमान' भी कहते हैं। परार्थानुमान के पाँच अवयव निम्नलिखित हैं- प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन।
प्रतिज्ञा - यह एक तार्किक कथन है जिसके द्वारा पक्ष में साध्य के होने का स्पष्ट निर्देश किया जाता है।
हेतु - पक्ष में साध्य के अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए जो साक्ष्य दिया जाता है उसे हेतु कहते हैं।
उदाहरण इसमें व्याप्ति का कथन तथा तत्प्रतिपादक उदाहरण का उल्लेख किया जाता है।
उपनय- उदाहरण द्वारा हेतु और साध्य में व्याप्ति सम्बन्ध दिखाने के बाद उपनय में उससे विशिष्ट हेतु को पक्ष में होना दिखाया जाता है।
निगमन - इसमें साध्य के पक्ष में होने का निष्कर्ष निकाला जाता है।
संक्षेप में, भारतीय न्याय में परार्थानुमान की तार्किक अभिव्यक्ति निम्नलिखित ढंग से की जाती है -
प्रतिज्ञा - पर्वत पर आग है।
हेतु - क्योंकि वहाँ धुआँ है।
उदाहरण- जहाँ धुआँ होता है वहाँ आग होती है जैसे - रसोईघर में।
उपनय - पर्वत पर धुआँ है।
निमगन - पर्वत पर आग है।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
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- प्रश्न- ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के प्रत्यक्ष प्रमाण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के आत्मा सम्बन्धी विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक के ज्ञान सिद्धांत की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- जैन धर्म के पाँच महाव्रत बताइए।
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